अरनिको
नेपाल के चित्रकार
अरनिको जन्म एक गरिब परिवार मे हुवा था उस वक्त विद्यार्थीयोको गुरुकुलके पाठशाला मे पठन पाठन कराने का चलनचल्ती था मगर अरनिको गरिब होने के कारण पाठशाला जाकर विद्या हासिल करनेका अवसर नहि मिला । अरनिकोका नाम बलबाहु था जब उस्ने चित्रकार मै प्रसिधि कमाया तो अरनिको के नाम से पेहेचानने लगे छोठा उमर से हि प्रतिभासालि अरनिको मेहेनती और बुद्धिवान था । उस वक्त नेपाल और चिन के सम्बन्ध बहुत अच्छा दो देशका व्यापार सै भि दो देश आपसी फाइदा लेता था उस वक्त नेपाल मे जयभीमदेव मल्ल राजा था और चीन मै कुब्ला खा नेपाल और चीनका सम्बन्ध अच्छा होने के कारण कुब्ला खा ने नेपाल के राजा जयभीमदेव मल्लको अपने देश मै कुछ अच्छे चित्रकारको भेजने के लिए अनुरोध किया राजा कुब्ला खा को एक सानदार मन्दिर बनाने का सोच बनाया था इसलिए उसने पत्र पत्र भेजकर चित्रकारो को भेजने के लिए अनुरोध किया उस वक्त नेपाली मूर्तिकार हरजगह बहुत प्रख्यात था और राजा जयभिमदेव नै ८० नेपाली मूर्तिकार चीन मै भेजा और चिनमे नेपालने भेजा हुवा चित्रकार टुक्रियो ने सुन्दर, सुन्दर मूर्तियो बनाने लगा ये देखकर चिनका जनता भि आसर्चय से हैरान होकर रह गया क्युकि उस वक्त चिन मै उस तरहका अच्छा मूर्तिकार नहि था नेपाली टुक्रिका मुर्तिकला, चिक्रकला देखकर राजा बहुत खुश हुवा । चिनमै चित्रकार, मुर्तिकला प्रर्दशन करने के बाद अरनिको नेपाल वापस आना चाहा पर चिनकी राजा नै उसे वहि चिन मै रहने के लिए बहुत बिन्ती कि ये देखकर अरनिको नै भि राजाका बिन्ती ठुक्रा ना सका और ईस तरह से नेपाल के एक हस्ति जो नेपाल कै लिए सितारा कि तरह चिन मै रह गया ।
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